उत्तर प्रदेश सरकार ने एक नया फैसला लेते हुए राज्य के उन प्राथमिक विद्यालयों का विलय करने की या बन्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है,जिनमें बच्चों की संख्या बेहद कम है। सरकार का दावा है कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर होगी और संसाधनों का सही उपयोग हो सकेगा।
लेकिन यह निर्णय शिक्षकों, प्रतियोगी छात्रों और सामाजिक संगठनों के गहरे विरोध का कारण बन गया है। – शिक्षक संगठन, प्रतियोगी छात्र, विपक्षी नेता और समाज के कई वर्ग इस पर गंभीर आपत्ति जता रहे हैं।
गोरखपुर से शुरू हुआ ‘पेयरिंग मॉडल’
प्राथमिक विद्यालयों का विलय का यह फैसला गोरखपुर जिले से शुरू हुआ है, लेकिन इसकी लहर पूरे राज्य में फैलने की तैयारी में है।यूपी में इस नीति की शुरुआत गोरखपुर से हुई है। यहां के प्राथमिक विद्यालय मिर्जवा बाबू को प्राथमिक विद्यालय रउतैनिया बाबू से जोड़ा गया है। मिर्जवा बाबू में सिर्फ 19 छात्र थे, जबकि रउतैनिया बाबू में पहले से 48 छात्र मौजूद थे। अब दोनों को मिलाकर कुल 67 छात्र होंगे।
बेसिक शिक्षा अधिकारी रमेंद्र कुमार सिंह का कहना है कि यह सिर्फ “विलय” नहीं बल्कि “पेयरिंग” है — जिससे बच्चों को अधिक संख्या, बेहतर शिक्षण वातावरण और गुणवत्ता मिलेगी। लेकिन शिक्षा विशेषज्ञ और शिक्षक संगठन इसे प्राथमिक विद्यालयों का विलय मान रहे हैं।
क्यों हो रहा है विरोध ?
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) का उल्लंघन?
शिक्षकों और संगठनों का कहना है कि यह फैसला शिक्षा को धीरे-धीरे निजीकरण की ओर ले जा रहा है।
RTE के अनुसार, हर छात्र को 1 किमी के भीतर विद्यालय मिलना चाहिए। लेकिन प्राथमिक विद्यालयों का विलय के कारण अब बच्चों को कई बार 2–3 किमी दूर जाना पड़ सकता है।
इससे गरीब, दलित, और पिछड़े वर्ग के बच्चों की शिक्षा बाधित होगी।
शालिनी मिश्रा, उपाध्यक्ष – टीचर वेलफेयर एसोसिएशन, का कहना है:
“कम छात्र संख्या का कारण सरकार की गलत नीति है, न कि सरकारी स्कूल की गुणवत्ता।”
Genrated by Chat GPT
प्रभावित होंगे लाखों परिवार?
प्राथमिक विद्यालयों का विलय से अनुमानित आंकड़े:
27,965 स्कूलों के प्रभावित होने की आशंका है।
1.40 लाख शिक्षक, 56,000 शिक्षा मित्र और 56,000 रसोइया अप्रासंगिक हो सकते हैं।
B.Ed. और D.El.Ed पास प्रतियोगियों के लिए सरकारी नौकरी की संभावनाएं और भी कम हो सकती हैं।
शिक्षक संगठनों और प्रतियोगी छात्रों का विरोध
UP BTC संघ, D.El.Ed मोर्चा, और विशिष्ट बीटीसी शिक्षक वेलफेयर एसोसिएशन ने विरोध दर्ज किया है।
ट्विटर (अब X) पर #SaveVillageSchool अभियान में 1.25 लाख+ ट्वीट हुए।
संघ ने कहा, अगर सरकार प्राथमिक विद्यालयों का विलय नहीं रोकेगी, तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
विपक्ष का हमला
चंद्रशेखर आज़ाद का बयान
“यह संविधान के अनुच्छेद 21(A) और 46 की सीधी अवहेलना है। यह निर्णय दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के बच्चों की शिक्षा पर सीधा प्रहार है।”
मायावती और प्रियंका गांधी की प्रतिक्रिया
मायावती ने कहा: “प्राथमिक विद्यालयों का विलय होना गरीब बच्चों के लिए शिक्षा के दरवाज़े बंद करने जैसा है।”
प्रियंका गांधी ने कहा: ” प्राथमिक विद्यालयों का विलय का फैसला सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।”
सरकार की दलील – शिक्षा में गुणवत्ता
सरकार का मानना है कि:
50 से कम छात्रों वाले स्कूलों में शिक्षा का माहौल नहीं बनता।
अधिक छात्रों के साथ पेयरिंग करने से शिक्षक-छात्र अनुपात (22:1) संतुलित रहेगा।
ऐसे स्कूलों की खाली बिल्डिंगों का उपयोग आंगनबाड़ी, रीडिंग कॉर्नर, हेल्थ सेंटर या बाल वाटिका के रूप में किया जाएगा।
विशेषज्ञों का सवाल – समाधान या संकट?
विशेषज्ञों का तर्क है कि अगर सरकार शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना चाहती है, तो:
नए शिक्षक भर्ती करें।
बिल्डिंग और संसाधनों में सुधार करें।
अप्रमाणित निजी स्कूलों की मान्यता रद्द करें।
न कि प्राथमिक विद्यालयों का विलय किया जाए।
सोशल मीडिया पर #SaveVillageSchool ट्रेंड
प्रतियोगी छात्रों और शिक्षक संगठनों ने #SaveVillageSchool हैशटैग से सोशल मीडिया पर आंदोलन छेड़ दिया है।
1.25 लाख+ ट्वीट्स एक दिन में हुए।
ऑनलाइन और ज़मीनी स्तर पर भी प्रदर्शन चल रहा है।
सुधार या समाज और शिक्षा पर संकट?
उत्तर प्रदेश सरकार का यह कदम जहां एक तरफ शिक्षा सुधार का दावा कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह करोड़ों परिवारों और लाखों छात्रों के लिए चिंता का कारण बन गया है। सरकार को चाहिए कि वह ऐसे निर्णयों में सभी स्टेकहोल्डर्स — शिक्षक, छात्र, माता-पिता और शिक्षा विशेषज्ञों से राय ले और पारदर्शिता के साथ काम करे।
प्राथमिक विद्यालयों का विलय अगर बिना व्यापक चर्चा और योजना के किया गया, तो यह नवोदित भारत की जड़ों को कमजोर कर सकता है।